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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में होते आया है हमनाम का “खेला”…देखिए “चुनाव चालीसा”

आज से करीब 40 साल पहले की बात करे तो एक फिल्म आई थी फिल्म का नाम था ‘अंगूर’ जो 5 मार्च 1982 में रिलीज हुई थी. संजीव कुमार और मौसमी चटर्जी स्टारर इस फिल्म को एक यादगार फिल्म मानी जाती है. 40 साल पहले अपनी शानदार कॉमेडी से संजीव ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया था. फिल्म की खास बात यह थी कि इसमें संजीव कुमार की डबल रोल थी उससे ज्यादा खास बात यह थी की उनके साथ सह कलाकार देवेन वर्मा भी डबल रोल में थे, फिल्म में दोनो किरदारों का डबल रोल होने के साथ साथ किरदारों के नाम भी एक ही थे, पूरे फिल्म में हमशक्ल होने और किरदारों के एक से नाम होने के इर्द गिर्द फिल्म गुदगुदाते हुए आगे बढ़ती जाती है, यहां इस फिल्म का जिक्र इसलिए क्योंकि ऐसा ही संयोग या कहे प्रयोग छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कई बार किए गए है लोग अक्सर कहते हे कि नाम में क्या रखा है ? तो उनके लिए बता दे कि इसी तरह मिलते जुलते नामों के चलते विधानसभा चुनाव में कई बार खेला हो चुका है…आईए देखते है आखिर चुनाव में अंगुर खट्टे क्यों किए जाते रहे है
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छत्तीसगढ़ के चुनावी बिसात में पिछले कुछ सालो से हमनाम की बहुत महिमा देखने को मिलते आ रही है बात नाम की हो रही है तो आपको 2014 के लोकसभा चुनाव की याद दिलाते हैं. उस समय पूर्व सीएम स्वर्गीय अजीत जोगी महासमुंद से कांग्रेस के उम्मीदवार थे. भाजपा के उम्मीदवार का नाम था चंदूलाल साहू . इस चुनाव में 10 और चंदू नाम के लोग खड़े हुए थे. इनमें 7 चंदूलाल थे तो तीन चंदू राम नाम के लोग थे. उस समय चर्चा यह थी कि अजीत जोगी ने ही इन चंदू लाल या राम नाम के लोगों को उतारा था. हालांकि पैतरा आजमाने के बाद भी जोगी जीत नहीं पाए थे और करीब एक हजार वोटों से उन्हे हार का सामना करना पड़ा था
अब बात 2018 के चुनाव में उतरे हमनामों की. 2018 में 9 विधानसभा चुनावों में हमनाम उतरे थे. हालांकि हमनामों के चक्कर में जिनके वोट कटने का डर था, उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ.

पहले बात अंबिकापुर की. यहां से कांग्रेस के टीएस सिंहदेव याने टीएस बाबा प्रत्याशी थे. सिंहदेव का पूरा नाम त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव है. क्षेत्र के लोग उन्हें टीएस बाबा के नाम से जानते हैं, इसलिए चुनाव में वे टीएस बाबा के नाम ही लिखते हैं. उनके खिलाफ तीन लोग चुनाव मैदान में थे. इनमें दो लोगों ने टीएस सिंह और कोष्टक में बाबा लिखा था तो एक का नाम त्रिभुवन सिंह था

इसके अलावा सीतापुर में भाजपा के प्रोफेसर गोपाल राम के विरुद्ध दो और गोपाल राम खड़े थे. इनमें एक गोपाल राम तिग्गा थे तो दूसरे गोपाल राम लकड़ा. इसी तरह कोरबा से भाजपा के विकास महतो के खिलाफ विकास कुमार महतो चुनाव मैदान में थे.

सक्ती में दो मेघाराम साहू, चंद्रपुर में दो रामकुमार यादव और दो गीतांजलि पटेल थी. कसडोल में दो शकुंतला साहू, धमतरी में दो रंजना साहू, दुर्ग ग्रामीण में दो बालमुकुंद देवांगन और प्रतापपुर में चार प्रेमसाय सिंह टेकाम चुनाव मैदान में थे.

किन्हें कितने वोट मिले

अंबिकापुर
टीएस बाबा, कांग्रेस – 100439
टीएस सिंह (बाबा), निर्दलीय – 1075
त्रिभुवन कुमार, एपीओआई – 360
टीएस सिंह (बाबा), जेएसी – 254

प्रतापपुर
डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, कांग्रेस – 90148
प्रेमसाय सिंह, निर्दलीय – 1375
प्रेमसाय सिंह, निर्दलीय – 792
प्रेमसाय, निर्दलीय – 692

सीतापुर
प्रोफेसर गोपाल राम, भाजपा – 50533
गोपाल राम तिग्गा, निर्दलीय – 452
गोपाल राम लकड़ा, निर्दलीय – 371

कोरबा
विकास महतो, भाजपा – 58313
विकास कुमार महतो, एनसीपी – 671

सक्ती
मेघाराम साहू, भाजपा – 48012
मेघाराम साहू, एनसीपी – 920

चंद्रपुर
रामकुमार यादव, कांग्रेस – 51717
राजकुमार यादव, निर्दलीय – 1779
रामकुमार यादव, निर्दलीय – 547
गीतांजलि पटेल, बसपा – 47299
गीतांजलि पटेल, निर्दलीय – 346

कसडोल
शकुंतला साहू, कांग्रेस – 121422
शकुंतला साहू, एनसीपी – 1009

धमतरी
रंजना साहू, भाजपा – 63198
रंजना साहू, निर्दलीय – 1189

दुर्ग ग्रामीण
डॉ. बालमुकुंद देवांगन, जोगी कांग्रेस – 11485
बालमुकुंद देवांगन, निर्दलीय – 2069

राजनीति के जानकारो के अनुसार यह एक रणनीति का हिस्सा है, जिसमें आप अपने प्रतिद्वंद्वी के वोट काटने के लिए उसी नाम के कई उम्मीदवार खड़े करते हैं. हालांकि, सफलता की कोई गारंटी नहीं है. 2014 में महासमुंद लोकसभा के चुनाव में 11 चंदू साहू का मामला हो या कुरूद में कई लेखराम का, जरूरी नहीं कि उद्देश्य सफल हों. ऐसा हो सकता है कि व्यक्तिगत लाभ के लिए कोई हमनाम व्यक्ति खड़ा हो, लेकिन जब ऐसे हमनाम उम्मीदवार एक नहीं, बल्कि कई हैं तो सीधे तौर पर यह प्रतिद्वंद्वी की चाल मानी जा सकती है

राजनीति के जानकार लोगो की माने तो यह मतदाताओं को भ्रमित करने जैसा है, जिससे किसी एक उम्मीदवार को मिलने वाले वोट को बांटा जा सके, लेकिन इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती, क्योंकि संविधान चुनाव लड़ने का अधिकार देता है. जो परिणाम नजर आते हैं, उससे भी यह तय है कि ऐसे हथकंडे सफल नहीं होते. जो हमनाम उतारे जाते हैं, उनका भी कोई राजनीतिक भविष्य नहीं दिखता

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